Monday, February 22, 2016

sammohan sadhna

सम्मोहन का नाम आता ही ,निश्चय ही  उस मथुरा व्रन्दावन के श्री कृष्ण  गोपाल  की छबि अपने मन  में आ ही जाती हैं  जिसने अपनी  मधुर  मुस्कान   से सारा  संसार को सम्मोहित कर दिया जिनकी  बांसुरी   की मधुर धुन से  तो  जीवित ही नहीं  बल्कि चल अचल सभी  बल्कि पेड़ और पत्थर भी और समय भी स्तंभित हो कर रुक जाते थे वही  १६ कला धारी भगवान्   श्री  कृष्ण  की आत्मा ,  हमारे मध्य ६४ कलाओं से युक्त हो कर परम  पूज्य  सदगुरुदेव भगवान्  के रूप में  उपस्थित  रहे हैं  ओर हैं भी कौंन  होगा  जो सदगुरुदेव की एक मुस्कान  पर न्योछावर न हो जाये .

 इस पवित्र  दिन पर यदि  सम्मोहन की बात न की जाये तो  उचित नहीं हैं आज का  दिन अपने आपमें सम्मोहन भरने का  हैंअपने कार्य क्षेत्र में सभी को अनुकूल बनाना परिवार में सदभाव का निर्माण करना पति पत्नी के मध्य  पुनः स्नेह्मयता  की स्थपाना करना  ही इसका  उदेश्य रहा हैंध्यान रहे  यहाँ  करना लिखा हैं करवाना   नहीं लिखा हैं 

जो कार्य बल पूर्वक कराया  जाये तबउसमे  स्नेह मयता कहाँ हैं ,
जो स्वतः  से  उभरी अंतर भावनाओ के कारण हम अपने प्रिय के लिए स्वयं करने  को उत्सुक  हो  वह हैं सम्मोहन ,
यह प्रयोग आपके रूप रंग में तो परिवर्तन  नहीं कर पायेगा पर यह तो अंतर  कीमिया  का  प्रयोग हैं साधना  हैं  जो  कुछ समय में  आप स्वयं  ही अनुभव करने लगेगेजो काम बोल कर कार्य जाये  वह नहीं बल्कि आपकी  उपस्थति से सभी प्रसन्नता  से स्वयं ही करने को आगे आयेआपकी उपस्थति उनके मनमे  ख़ुशी दे यह हैं वह प्रयोग.     
यह प्रयोग दो दिनका हैंसभी पूजन  नियमानुसार  करने के बाद भगवान् श्री कृष्ण  का पूजन करे अपने सामने सुपारी रख कर घी का दीपक प्रज्वल्लित  करे . नैवेद्यके रूप  में आप सफेद रंग के लड्डू अर्पित करे . फिर एक बार पंचोपचार पूजन करे .इन दो दिन  में रोज़ ११ माला मंत्र जप करना हैं इस मंत्र जप के दौरान आपकी दिशा  पूर्व  होगी आप स्वेत  रंग के वस्त्र  और स्वेत    आसन का ही प्रयोग करे जप माला  या तो स्फटिक की हो  या  हकीक की  या दोनों नहीं  हो तो अपने हांथो की अंगुलीसे   भी गिन सकते हैं  पर कम से कम १ १/२  घंटे जप करना हैं (९० मिनिट ). 
मंत्र :   क्लीं क्लीं क्रीं क्रीं हुं हुं फट्


यदि इस मंत्र जप के दौरान आप अपान    मुद्रा  का प्रदर्शन दुसरे हाथ से  लगतार करते रहे  तो अद्भुत ही परिणाम प्राप्त होंगे,
 क्या  हैंवह अद्भुत ता ,????
वह यह  की आपके मन  के अन्तर ता  के विकार भी मंत्र जप केप्रभाव से  समाप्त हो जायेगे,जब मन भी निर्मल  हो जायेगा  तब ,निर्मल मन में ही तो  सदगुरुदेव आ पाएंगे .
आप ही सोचे इतना  घृणा ,अनेको विकार  अपने मन में विचारों की गंदगी  मन में भर  करजय गुरुदेव बोल दिया ओर ,क्या आप  सदगुरुदेव को  अपने ह्रदय में आकर रहने  को कह सकतेहैं इन्ही सब बातों को सदगुरुदेव ने ,रक्त कण कण  स्थापन  साधना  में  तो समझाया  हैंपहले मन/ह्रदय  की अपनी  सफाई  तो करे  फिर हमसभी  के  कहने  के पहले  ही हमारे प्राणाधार हमारे मन में होने ,वोह तो कब से कहते हैं कि वोह आने  तो तैयार हैं पर हम ही अपने ह्रदय  के द्वार बंद करके गंदगी को साफ  किये बिना  उन्हें बुलाते रहते हैं 

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