अक्षय तृतीय वर्ष की साढ़े तीन मुहूर्तों मैं से एक पूर्ण मुहूर्त है जो पूर्ण सिद्धिप्रदायक है और अक्षय है जिसमें कि गयी चाहे साधनाएं हो या पुण्य कर्म हो या दान, ताप, जप आदि हों उनका कभी क्षय नहीं होता अर्थात उनके फल पूर्ण प्रभाव जीवन पर्यंत रहता है | किन्तु इसका अर्थ यह नहीं की हम कोई भी साधना एक हि बार करें |
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इसी क्रम में अप्सरा यक्षिणी जैसी ही अद्भुत शक्ति जो महादेव कि शक्ति है और साथ ही साधक की सखी या प्रिया रूप में सिद्ध होने वाली शक्ति है और यह साधक को कोई हानि भी नहीं पहुंचा सकती जैसा कि आप लोगों का मत है |
स्नेही स्वजन, प्रत्येक साधना के विशेषतः अप्सरा यक्षिणी, भूत प्रेत, चंडालिनी, शाकिनी, डाकिनी आदि के दो पक्ष होते हैं- एक वाम मार्गी व एक दक्षिण मार्गी | उसी अनुसार प्रतिफल प्रदान करती है, जिस मासिकता से, संकल्पबद्ध हो कर व जिस विधि से आप साधना करतें है |
चूँकि इस बार कि अक्षय तृतीया २१ अप्रैल को आ रही है जो हमारे पूज्य गुरुदेव का अवतरण दिवस है और हम शिष्यों का प्रिय त्यौहार तो आप सब लोगों को उपहार स्वरुप दो साधनाएं –
1. अक्षय तृतीया की सुवर्ण गौरी सिद्धि साधना
2. समस्त गुरु भाइयों के लिए गुरु रहस्य सिद्धि साधना
सुवर्ण गौरी सिद्धि साधना -
स्वर्ण गौरी शक्ति का सौभाग्य स्वरुप है | जो जीवन में अति आनंद, वैभव, अक्षय धन दात्री सोभाग्य प्रदात्री देवि है, इनकी सिद्धि के बाद जीवन में निरंतर उत्साह, सफलता तथा पारिवारिक सुख शान्ति अनुकूलता प्राप्त होते रहतें हैं |
सुवर्ण गौरी साधना जीवन के रगिस्तान में अमृत कुंद के सामान है किन्तु एक बार सिद्ध हो जाने पर साधक के जीवन में प्रत्येक क्षण अपना प्रभाव देती रहती है | सुवर्ण गौरी अप्सरा कहीं जाती है इनका एक विशेष नाम शिव दूती भी है जो भगवान् शिव की कृपा एवं वर प्राप्त कर अपने सर्वांग स्वरुप में प्रिया है |
महदेव की विशिष्ठ शक्तियों के सम्बन्ध में एक विशिष्ठ ग्रन्थ आनंद मंदाकिनी है जिसमे इस साधना के सम्बन्ध में पूर्णतः व प्रमाणिकता से विधि विधान के साथ लिखा गया है इस ग्रन्थ में सुवर्ण गौरी के सम्बन्ध में लिखा गया है कि जो साधक इसकी सोलह शक्तियों को सिद्ध कर लेता है वह संसार का सौभाग्यशाली व्यक्ति हो जाता है |
इनके सोलह स्वरुप हैं
· अमृताकर्षणिका
· AMRITAKARSHNIKA
· रूपाकर्षणिका
· RUPAKARSHNIKA
· सर्वासाधिनी
· SARVASADHINI
· अनंगकुसुम
· ANANGKUSUMA
· सर्वदुखविमोचिनी
· SARVDUKHVIMOCHINI
· सर्वसिद्धिप्रदा
· SARVSIDDHIPRADA
· सर्वकामप्रदा
· SARVKAAMPRADA
· सर्वविघ्ननिवारणी
· SARVVIGHNANIVARINI
· सर्वस्तम्भनकारिणी
· SARVSTAMBHANKARINI
· सर्वसंपत्तिपूर्णी
· SARVSAMPATTIPURNI
· चित्ताकर्षणिका
· CHITTAKARSHNIKA
· कामेश्वरी
· KAAMESHWARI
· सर्वमंत्रमयी
· SARVMANTRAMAYI
· सर्वानन्दमयी
· SARVANANDMAYI
· सर्वेशी
· SARVESHI
· सर्ववाशिनी
· SARVVASHINI
विधि- व सामग्री -- पीले वस्त्र पीला आसन , घी का दीपक अष्ट गंध, पीले ही पुष्प, नैवैद्ध हेतु लड्डू केवड़ा मिश्रित जल ताम्र पात्र, अक्षत यानी बिना टूटे चावल इत्र, और सुगंधित अगरबत्ती | साथ ही सोलह सुपारी जो सोः शक्तियों को अर्पित की जाएगी , ये साधना रात्री कालीन है १० बजे के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ
जाएँ तथा गुरु गौरी एवगणेश पूजन संपन्न करें तथा संकल्प लेकर एक माला गुरु मन्त्र की अवश्य करें,
तत्पश्चात हाथो में पुष्प और चावल लेकर सुवर्ण गौरी का आवाहन और स्वागत करें . आवाहन के बाद इस स्वागत मन्त्र का पांच बार उच्चारण जोर से करें इसके बाद यदि
आपके पास कोई भी स्वर्ण का आभूषण हो तो उसे एक कटोरी में धोकर रखें तथा उपरोक्त मन्त्र से सोलह
शक्तियों का पूजन पुष्प केवडा मिश्रित जल और अक्षत से करें | इसके बाद मिटटी के सात दिए जो घी के होंगे प्रज्वलित करें व की ७ माला जप करें मूल मन्त्र की ७ माला मन्त्र जप करें | ये मन्त्र जप रुद्राक्ष या पीले हकीक, या हल्दी माला से करें | प्रत्येक माला के बाद केवड़ा मिश्रित जल से निम्न संकल्प लेना है
" त्रेलोक्यमोहने चक्रे इमा: प्रकट स्वर्ण गौरी " . इस साधना के बाद साधक वहीँ पर भूमि शयन करें
स्वागत मन्त्र-
गौरी दर्शनमिच्छन्ति देवाः स्वामीष्टसिद्धये |
तस्ये ते परमेशायै स्वागतं स्वागतं च ते ||
कृतार्थेनुग्रहितोऽस्मि सकलं जीवितं मम |
आगता देवि देवेशि सुस्वागत]मिदं पुनः ||
GAURI DARSHANMICHANTI DEVAH SWAMISTSIDDHYE
TASYE TE PARMESHAAYE SWAGATAM SWAGATAM CH TE
KRITARTHENUGRAHITOSMI SAKALAN JIVITAM MAM
AAGATA DEVI DEVESHI SUSWAGATMIDAM PUNAH
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ॐ सुवर्ण गौरी अमृताकर्षणिका पूजयामि नमः |
ॐ सुवर्ण गौरी रूपाकर्षणिका पूजयामि नमः |
ॐ सुवर्ण गौरी सर्वासाधिनी पूजयामि नमः |
OM SUVARN GAURI AMRITAKARSHNIKA PUJYAMI NAMH
OM SUVARN GAURI RUPAKARSHNIKA PUJYAMI NAMH
OM SUVARN GAURI SARVASADHINI PUJYAMI NAMH
सुवर्ण गौरी मन्त्र –
युं क्षं ह्रीं सुवर्ण गौरी सर्वान्कामान्देही यं कुं ह्रीं युं नमः ||
YUM KSHAM HREEM SUVARN GAURI SARVANKAMANDEHI YAM KUM HREEM YUM NAMAH
इस प्रकार साधना सम्पन्न होने पर साधक को कभी-कभी क्रम के दौरान हि अनुभूतियाँ होने लगती हैं |
चूँकि अक्षय तृतीय है अतः एक ही दिन क प्रयोग है ----- अब साधना सम्पन्न करें साधन संपन्न बनें
इस प्रकार साधना सम्पन्न होने पर साधक को कभी-कभी क्रम के दौरान हि अनुभूतियाँ होने लगती हैं |
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